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Sunday 30 June 2013

अस्तित्व

नारी तेरे छबि कलियाँ सी 
बन सुमन चमन आबाद किया । 
भ्रमरों ने मर्कन्द पिया 
फिर हल पे तेरे छोड़ दिया ॥ 

कभी पिरोई गयी तू मोती सी 
उर  लिपट हर श्रृंगार किया । 
जब धूमिल हुई या टूट गयी 
नजरों से तुझको दूर किया ॥ 

कभी बन कर  खिलौना तुम आई 
बन आकर्षण मनुहार किया । 
कभी रूठ गया कभी खेल लिया 
कभी तोड़ किनारे फेक दिया ॥ 

तुम दिखी कभी  कठपुतली सी 
तेरी डोर किसी को सौंप दिया 
मन छह वर किया तुझपर 
अस्तित्व को तेरे नष्ट किया ॥ 

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 19 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in 
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. सच नारी आज भी कई जगह ? बनी नज़र आती है

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