नारी तेरे छबि कलियाँ सी
बन सुमन चमन आबाद किया ।
भ्रमरों ने मर्कन्द पिया
फिर हल पे तेरे छोड़ दिया ॥
कभी पिरोई गयी तू मोती सी
उर लिपट हर श्रृंगार किया ।
जब धूमिल हुई या टूट गयी
नजरों से तुझको दूर किया ॥
कभी बन कर खिलौना तुम आई
बन आकर्षण मनुहार किया ।
कभी रूठ गया कभी खेल लिया
कभी तोड़ किनारे फेक दिया ॥
तुम दिखी कभी कठपुतली सी
तेरी डोर किसी को सौंप दिया
मन छह वर किया तुझपर
अस्तित्व को तेरे नष्ट किया ॥
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 19 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
सच नारी आज भी कई जगह ? बनी नज़र आती है
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